मंगलवार, 9 नवंबर 2010

भारत बनाम भ्रष्टाचार: 'प्रतिकार' – राजा सशंकित, प्रजा सशंकित और यह ध्वजा सशंकित

राजा सशंकित, प्रजा सशंकित और यह ध्वजा सशंकित,
चव्हाण-कलमाड़ी
सोंचता हूँ देश की धरती, तुझे त्याग ही दूँ ।
पर, 
तज नहीं सकता जो प्राणों से भी प्यारा हो,
वो जिसने गोद में पाला, जो सर्वस्व हमारा हो।
उनके रक्त की उष्ण धार को फिर से बहा देंगे,
जो इस धरा पर लूट का व्यापार रचते हैं।
वे उस जमीं की लूट का धन ले बटोरे हैं,
जिस जमीं पर जान हम अपनी छिड़कते हैं।।१।।


शिक्षा प्रताड़ित, गुरु प्रताड़ित आज हर विद्या प्रताड़ित,
सोंचता हूँ देश के गुरुकुल, तुझे भूल ही जाऊँ।
पर,
भुला नहीं सकता जो कंठों से गुजरता हो,
जो विद्या हमारी हो, जो गांडीव हमारा हो।
उन सब दलालों को हम चुन-चुन निकालेंगे,
जो शिक्षा के नाम का व्यापार रचते हैं।
वे उस शिक्षा के लूट का धन ले बटोरे हैं,
जिस शिक्षा के लिए हम अपने घर-बार खरचते हैं।।२।।


संस्कृति  विसर्जित, भाषा विसर्जित, राष्ट्र का हर गौरव विसर्जित,
गिलानी-अरुंधती
चाहता हूँ देश की माटी, तुझे खोखला कह दूँ।
पर,
गर्व न कैसे करूँ? गौरव इतिहास जिसका हो,
जनक जो सभ्यता का हो, गुरु जो सारे जहां का हो।
हम राष्ट्र द्रोही कंटकों का समूल नाश कर देंगें,
जो इस धरा का नमक खा, दुश्मन की गाते है।
वे उस धरा को तोड़ने का उद्योग करते हैं,
जिस धरा के सृजन में हम तन-मन लुटाते हैं।।३।।   – प्रकाश ‘पंकज’



गिलानी : एक कश्मीरी अलगाववादी जिसने दिल्ली में आकर अलगाववाद को भड़काया

पिछले  कुछ दिनों से मेरे मन की स्थिति दयनीय थी। चाह रहा था कुछ लिखना पर लिख नहीं पा रहा था। अचानक कल रात फूट परे ये शब्द। करुण स्थिति में लिखी गई यह कविता समाज के कुछ ऐसे कुख्यात प्रकार के लोगों को समर्पित है जो की "निम्न" हैं :

अनुच्छेद।।१।।  कलमाड़ी, अशोक चव्हाण, ए. राजा और उन जैसे भ्रष्ट लोगों के लिए।
अनुच्छेद।।२।। शिक्षा के व्यापारियों के लिए।
अनुच्छेद।।३।। गिलानी, अरुंधती और उन जैसे अन्य देशद्रोहियों / राष्ट्र-विरोधियों के लिए।

*चित्र: गूगल साभार

शनिवार, 6 नवंबर 2010

ईश्वर भी क्या व्यापारी है?

















ईश्वर तो प्यासा केवल प्रेम का , प्रेम में परित्याग का ,
चरित्र में सदभाव का , सदभाव के संचार का ,
मूढ़ता में ज्ञान का , ज्ञान के विस्तार का ,
निर्जिवितों में प्राण का, रक्त के प्रवाह का ,
प्रफुल्लितों से मेघ का , सुयश समृद्धि का ,
सुखद चंद्रवृष्टि का , सम्यक सुदृष्टि का ,
सजगता के भ्रूण का , विश्वास के एक नव अरुण का।  – प्रकाश ‘पंकज’