tag:blogger.com,1999:blog-49321134829648890402024-03-14T19:37:40.554+05:30'पंकज-पत्र' पर पंकज की कुछ कविताएँपंकज-पत्र का एक पक्ष पंकिल दूसरा पक्ष निर्मल। पंकिल शब्दों द्वारा निर्मल सन्देश पहुँचाने का एक प्रयास।
यदि मेरी ये पंकिल कविताएँ आपको निर्मल लगीं और पसंद आई तो इस पते(लिंक) को मित्रों में भी अवश्य बांटें, आपका आभारी रहूँगा। - प्रकाश ‘पंकज’ | © सर्वाधिकार सुरक्षितप्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-77332863712040022192015-02-20T17:29:00.000+05:302015-02-25T20:45:24.564+05:30दरिद्र नारायण
सूखी रोटी, पवन हिलोरे,नभ चादर, थल शैय्या।मेरे दरिद्र नारायण भईया।टूटी झोपड़, फूस की नथिया,बाबा की टूटी नईया ।मेरे दरिद्र नारायण भईया।बाल जटीला, खाल मटीला,न बकरी न गैया।मेरे दरिद्र नारायण भईया।हल न कुदाली, पतोह रुदाली,साहू माँगे रूपैया।कहे दरिद्र नारायण भईया।खाली खजाना, एक न दाना,कबहू न आवे गोरैयाकहे दरिद्र नारायण भईया।खून जलावै, शहर कमावै,थक-हारे आवै सईंया।मेरे दरिद्र नारायण भईया। सर्दी आवे प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-15223555862304026422013-06-02T18:09:00.003+05:302013-08-21T23:01:26.184+05:30रतियाँ कुहके कोयलिया, दिन मा उल्लू जागे
रतियाँ कुहके कोयलिया, दिन मा उल्लू जागे,
नीति-रीति सब बिसराए दुनिया भागे आगे।
भागे देखो ऐसा की मन मा शैतनवा जागे,
देह-नेह दरकार रे भैया, मन अनुराग न जागे।
अनुराग जे बाप-माए के अब त विषैला लागे,
घर में अकेला बुढ्ढा-बुढ्ढी राह देखे टघुराये।
रतियाँ कुहके कोयलिया, दिन मा उल्लू जागे,
नीति-रीति सब बिसराए दुनिया भागे आगे।
मुँह पर छूछे वाहवाही है मन कोहू न भावे,
प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-33893692216966891312012-09-28T22:43:00.000+05:302015-04-05T20:03:06.131+05:30कलेजे को समन्दर किया होता
एक बार जो जरा देख मुझे मुस्कुरा दिया होता,
कसम खुदा की, कलेजे को समन्दर किया होता !
कभी जो तुमने सपनों से मुझे झाँक ही लिया होता,
मजाल! जो उसे बटोर के न हकीकत किया होता?
बस एक कदम खुद धरती पे हमारी जो तुम रखते,
कहते गर उसे नींव से न ईमारत किया होता !
अगले तिराहे से मिल चलने का गर भरोसा दिया होता,
सीना ठोक ज़माने से मैंने बगावत किया होता !
उस रात अँधेरी में मुझसे मिलने जो प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-57961704606438278882011-08-05T18:04:00.008+05:302011-12-05T23:31:02.773+05:30भारत बनाम भ्रष्टाचार: फिर अन्ना भूखा रे!
भारत डूबा भ्रष्टाचार में कौन बचाए रे?
दो पाटन के बीच है जनता कोई बचाए रे!
एक तरफ महँगाई, भारी कर भी देते हैं,
कर कर करते भारत में घुट-घुट कर जीते हैं।
घूसखोरी के करतब हर अफसर दिखलाता है,
जनता का सेवक अब पद का धौंस जमाता है।
आकण्ठ डूबे भारत ने कुछ लिया हिचकोले रे,
जनाक्रोश भी उमड़ रहा है हौले हौले रे।
केजरीवाल ने दिया एक तिनके का सहारा जो,
किरण - हेगड़े - अन्ना ने फिर मिलके दहाड़ा जो।
सोई प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-35072285670758135032011-06-19T22:27:00.028+05:302011-12-05T23:29:57.312+05:30भारत बनाम भ्रष्टाचार: जन की गुहार जन-लोकपाल
http://www.indiaagainstcorruption.org/
एक चतुर नाग,करे शत-प्रहार,मुँह फाड़-फाड़,डँसे बार-बार।जन चीत्कार करे बार-बार,मचे हाहाकार,आह! अत्याचार।ये दण्डप्रहार के बहाने हजार,ये लोकाचार का बलात्कार,यहाँ भ्रष्टाचार! वहाँ भ्रष्टाचार!अँधी सरकार! चहुँ अँधकार!भारत बीमार, रोग दुर्निवार।
जन अब हमारी सुन ले पुकार,पारदर्शिता की यह बयार बहती हीं जाये, रुक्के न यार।मंथन करें, कर लें विचार,जनता की माँग प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-85140851786065062402010-12-19T12:11:00.015+05:302010-12-27T23:31:42.300+05:30प्रलय पत्रिका: शिव जाग मनुज ललकार रहाझिझक रहे थे कर ये कभी से 'प्रलय-पत्रिका' लिखने को,
आज वदन से सहसा निकला - "अब धरती रही न बसने को"।
रोक न शिव तू कंठ हलाहल, विकल रहे सब जलने को,
दसमुख कहो या कहो दुश्शासन, तरस रहे हम तरने को ।।
शिव देख मनुज ललकार रहा, शिव देख मनुज ललकार रहा,
अस्तित्व ही तेरा नकार रहा , शिव जाग मनुज ललकार रहा।
तुम क्या संहारक बनते हो? प्रलय मनुज स्वयं ला रहा।
तुम क्या विनाश ला सकते जग में? विनाश मनुज स्वयं ला रहा।प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-62895943702473053092010-11-09T17:58:00.027+05:302011-06-28T17:14:36.591+05:30भारत बनाम भ्रष्टाचार: 'प्रतिकार' – राजा सशंकित, प्रजा सशंकित और यह ध्वजा सशंकितराजा सशंकित, प्रजा सशंकित और यह ध्वजा सशंकित,
चव्हाण-कलमाड़ी
सोंचता हूँ देश की धरती, तुझे त्याग ही दूँ ।पर, तज नहीं सकता जो प्राणों से भी प्यारा हो,वो जिसने गोद में पाला, जो सर्वस्व हमारा हो।उनके रक्त की उष्ण धार को फिर से बहा देंगे, जो इस धरा पर लूट का व्यापार रचते हैं।वे उस जमीं की लूट का धन ले बटोरे हैं,जिस जमीं पर जान हम अपनी छिड़कते हैं।।१।।
शिक्षा प्रताड़ित, गुरु प्रताड़ित आज हर प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com30tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-27892549791989728862010-11-06T00:24:00.000+05:302012-10-04T23:39:47.476+05:30ईश्वर भी क्या व्यापारी है?
ईश्वर तो प्यासा केवल प्रेम का , प्रेम में परित्याग का ,
चरित्र में सदभाव का , सदभाव के संचार का ,
मूढ़ता में ज्ञान का , ज्ञान के विस्तार का ,
निर्जिवितों में प्राण का, रक्त के प्रवाह का ,
प्रफुल्लितों से मेघ का , सुयश समृद्धि का ,
सुखद चंद्रवृष्टि का , सम्यक सुदृष्टि का ,
सजगता के भ्रूण का , विश्वास के एक नव अरुण का। – प्रकाश ‘पंकज’
प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-79902261547543036182010-10-24T15:14:00.005+05:302010-12-09T16:40:22.086+05:30जठराग्नि तुम्हें सारे अधिकार देती है।
जठराग्नि तुम्हें सारे अधिकार देती है।
भूखे हो? हाथ खाली हैं? जिनके हाथ भरे हैं उनसे लो, छीनो, खाओ, कोई पाप न लगेगा। घबराओ मत, भूख तुम्हें सारे अधिकार देती है ।
जीने का अधिकार सबको है, प्राकृतिक सम्पत्ति और उनसे जनित सारी सम्पत्तियों पर सबका बराबर अधिकार है ।
भूखों! उठ्ठो! खा जाओ समाज में फैली सारी असमानताओं को।
धर्म, नारी-मुक्ति, दलित-मुक्ति के नाम पर
राजनितिक व्यापार करने वालों, पहले प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-60581699522543761372010-09-23T12:55:00.018+05:302010-12-03T12:47:40.164+05:30दिनकर जी के जन्म दिवस पर एक कवितांजलि: ईश्वर के काव्यदूतराष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' जी के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर मेरी और से एक कवितांजलि :
"ईश्वर के काव्यदूत "
ओ ईश्वर के काव्यदूत तुम फिर से मही पर आओ,
मानवता फिर सुप्त हो चली आकार उसे जगाओ।
जननी के माथे पर अब भी लटक रही तलवारें,
रोज रोज सुनते रहते हम शत्रु की ललकारें।
कहीं धमाका-आगजनी, फिर कहीं खून की प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-69311006469924938222010-09-13T17:36:00.025+05:302011-01-14T18:45:27.399+05:30उतिष्ठ हिन्दी! उतिष्ठ भारत! उतिष्ठ भारती! पुनः उतिष्ठ विष्णुगुप्त!मैं हिन्दी का पिछला प्यादा, शपथ आज लेता हूँ,आजीवन हिन्दी लिखने का दायित्व वहन करता हूँ।
रस घोलूँगा इसमें इतने, रस के प्यासे आयेंगे,
वे भी डूब इस रम्य सुरा मे मेरे साकी बन जायेंगे।
कलम बाँटूंगा उन हाथों को जो हाथें खाली होंगी,
वाणी दूंगा मातृभाषा की जो जिह्वा नंगी होगी।
कल-कल करती सुधा बहेगी हर जिह्वा पर हिन्दी की,
नये नये सैनिक आवेंगे सेना मे तब हिन्दी की।
हिन्दी के उस नव-प्रकाश मे फिर प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-2531437706278451882010-09-13T15:25:00.004+05:302010-09-14T02:03:46.408+05:30जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।
मेरा सर फिर गया,
आंखें लाल,
शरीर गुस्से से काँप रहा है,
सांसों का तीव्र आवागमन ।
मार डालूं उन लुटेरों को जो छीन रहे हैं मुझसे मेरी वाणी।
हमें गूंगा कर रहे हैं,
हमारा सबसे समृद्ध उपहार छीन रहे हैं हमसे,
पाई है जो हमने अपने पूर्वजों से।
भाषा की खोज मे हमने
न जाने कितनी शताब्दियाँ गवाई होंगी
इसका अनुमान लगाना भी हमारे बस की बात नहीं,
और आज हम ही प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-23740080977055015702010-03-15T18:37:00.001+05:302010-03-15T18:38:19.012+05:30भगत गुरु सुखदेव भजो तुम भगत गुरु सुखदेव !
मानव धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
राष्ट्र धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
पुत्र धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
बन्धु धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
भगत गुरु सुखदेव भजो तुम
...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा है जागृति की
...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा है क्रांति की
...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा संग्राम की
...........भगत प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-10757983919449331692010-02-24T14:36:00.015+05:302010-09-30T11:17:51.462+05:30मंदिर मस्जिद मिट जाने दो, मरघट उनको हो जाने दो ।
मंदिर-मस्जिद मिट जाने दो, मरघट उनको हो जाने दो ,
तुम न रोपो आज शिवालय, शिव को धरती पर आने दो ,
फिर तांडव जग में मच जाने दो, चिर वसुधा को धँस जाने दो ।
- प्रकाश 'पंकज'प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-82885758689234985012010-02-19T20:50:00.008+05:302010-12-03T13:53:49.841+05:30शुभान्त - एक शुभारंभ
शुभान्त ! - एक शुभारंभ
कामनाएँ, मधुर कामनाएँ, शुभ कामनाएँ,
कामनाएँ आपके उज्जवल भविष्य की,
कामनाएँ हर संघर्ष की, संघर्ष में विजय की,
सविश्वास डटे रहने की, ज्ञान से झुके रहने की ।
कामनाएँ अविरत ज्ञानोपार्जन की,
कामनाएँ ज्ञान बांटने की, भटकों को मार्ग बताने की,
मंगल कामनाएँ आपके पथ प्रदर्शक जीवन की ।
इच्छाएँ, हमारी आन्तरिक इच्छाएँ,
इच्छाएँ आपसे जुड़े रहने की,
एक डोर से प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-52772492791480492032010-02-15T14:56:00.012+05:302010-08-10T15:28:04.320+05:30झूठी है यह "अमन की आशा", फिर काँटों भरी एक चमन की आशाअमन-अमन हम रटते आये, घाव पुराने भरते आये ,
झूठी पेश दलीलों पर , शत्रु को मित्र समझते आये ।
झूठी है यह "अमन की आशा", फिर काँटों भरी एक चमन की आशा,
अमन-चैन के मिथ्या-भ्रम में , शीश के मोल चुकाते आये । - पंकज प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-16370667708440309672010-02-12T15:50:00.009+05:302010-11-10T00:32:06.708+05:30शक्ति तुम्हे अब शिव की शपथ- "फिर शक्ति दुरुपयोग न हो" ( मेरी नयी कविता 'प्रलय-पत्रिका' की कुछ पंक्तियाँ )
शशिधर नृत्य करो ऐसा की नवयुग का फिर नव-सृजन हो,पाप-मुक्त होवे यह जगती, धरती फिर से निर्जन हो,दसो दिशायें शान्त हो, पुनः वही जन-एकांत हो,संसकृतियां फिर से बसें, न कोई भय-आक्रांत हो,और शक्ति तुम्हे अब शिव की शपथ- "फिर शक्ति दुरुपयोग न हो" । – प्रकाश ‘पंकज’
प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-45889785399811034512010-02-12T15:33:00.004+05:302010-11-10T15:31:48.086+05:30फ़िर एक सितारा टूट चला
प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-2747420876965363152010-02-12T15:33:00.000+05:302010-02-12T15:33:04.743+05:30प्रकृति का अभिशाप मानव
प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-25115551588815087472010-02-04T21:09:00.002+05:302010-11-03T20:52:57.972+05:30इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर -मेरी पहली कविता
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे,इनती खुशियाँ भी न देना, दुःख पर किसी के हंसी आने लगे ।नहीं चाहिए ऐसी शक्ति जिसका निर्बल पर प्रयोग करूँ,नहीं चाहिए ऐसा भाव किसी को देख जल-जल मरूँ ।ऐसा ज्ञान मुझे न देना अभिमान जिसका होने लगे,ऐसी चतुराई भी न देना लोगों को जो छलने लगे ।इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे ।इतनी भाषाएँ मुझे न सिखाओ मातृभाषा भूल जाऊं,ऐसा नाम कभी न देना कि पंकज प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-78406398649847443412010-02-01T18:37:00.000+05:302010-02-01T18:37:38.574+05:30दो पहिये की बग्गी से जीवन-पथ आसान बनेप्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-81652471207278138742009-12-21T11:36:00.012+05:302010-11-07T23:51:57.615+05:30दो जर्जर बाँसों की बनी है यह सीढीदो बाँसों की बनी है यह सीढी ,क्या है? तोड़ डालो ।अच्छी खासी ऊंचाई तक पहुँच ही गए होऔर वापस जाने का विचार तक नही लाना है मन में ।व्यर्थ ही इस सीढी को देखकर बार-बार तुमसंकोच करोगे आगे बढ़ने से,ऊपर देखोगे नजरें झुकाकर,जयघोष कर भी पराजित समझोगे ।उनकी टकटकी लगाती निगाहों को देख व्यर्थ ही,तुम्हे बार-बार अपने बचपन में जाना होगा,
जहाँ तम्हें चलने से ज्यादा गिरने की आदत थी,और दो हरे भरे चेहरे तम्हें चलने प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-61955491014794442642009-12-21T11:34:00.012+05:302010-02-22T19:13:40.629+05:30इन्सान खुद को शीशे में देख दंग है
यह कैसा प्रकाश जो राह दिखलाता नहीं,यह कैसा प्रभात जब सूर्य उदित होता नहीं,यह गुरु कैसा जिसे दक्षिणा की भूख है,यह शिष्य कैसा जिसे गुरु का आदर नहीं,वह ज्ञानी कैसा जिसे ज्ञान का अभिमान है,वह ज्ञानी वैसा जो रावण के समान है,ज्ञानी रावण के मन में फिर से, अभिमान की कैसी यह उठी उमंग है ।धरती आसमान हवा ही नहीं इन्सान खुद को शीशे में देख दंग है । - प्रकाश 'पंकज'यह कविता अनुभूति पर भी प्रकाशित: http://प्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-4932113482964889040.post-37202040783251082052009-12-21T11:34:00.010+05:302010-01-08T20:15:14.046+05:30कर्म का संकल्प लो -मेरी दूसरी कविता
यह कविता अनुभूति पर भी प्रकाशित: http://www.anubhuti-hindi.org/nayihawa/p/prakash_pankaj/index.htmप्रकाश पंकज | Prakash Pankajhttp://www.blogger.com/profile/05215136201174516321noreply@blogger.com4