ईश्वर तो प्यासा केवल प्रेम का , प्रेम में परित्याग का ,
चरित्र में सदभाव का , सदभाव के संचार का ,
मूढ़ता में ज्ञान का , ज्ञान के विस्तार का ,
निर्जिवितों में प्राण का, रक्त के प्रवाह का ,
प्रफुल्लितों से मेघ का , सुयश समृद्धि का ,
सुखद चंद्रवृष्टि का , सम्यक सुदृष्टि का ,
सजगता के भ्रूण का , विश्वास के एक नव अरुण का। – प्रकाश ‘पंकज’
सचमुच धर्म बिकता है!!!!!
जवाब देंहटाएंधर्म बिकता ही नहीं है, दूसरों को बेच भी देता है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आज कल खूब दुकानदारी चल रही है धर्म के नाम पर ....अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंdharm ki dukandaari pe sahi kaha aapne..
जवाब देंहटाएंtujhko ladoo ka bhog lagayenge
जवाब देंहटाएंtera mandir banwayenge
etc etc...bhagwan ko lubhav diya ja raha hai
30 rupiye to jayada hai bhagwan ko 11 rs ke parshad ka lalach diya ja raha hai