भूखे हो? हाथ खाली हैं?
जिनके हाथ भरे हैं उनसे लो, छीनो, खाओ,
कोई पाप न लगेगा।
घबराओ मत, भूख तुम्हें सारे अधिकार देती है ।
जीने का अधिकार सबको है,
सबका बराबर अधिकार है ।
भूखों! उठ्ठो!
खा जाओ समाज में फैली सारी असमानताओं को।
धर्म, नारी-मुक्ति, दलित-मुक्ति के नाम पर
राजनितिक व्यापार करने वालों,
राजनितिक व्यापार करने वालों,
पहले क्षुधा-मुक्ति दिलाओ,
नहीं तो एक दिन यही भूख तुम्हें निगल जायेगी,
खा जायेगी तुम्हारी सत्ता को।
और डार्विन, एक दिन भगत फिर पैदा होगा
और तेरे उस "सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट" वाले
कुरूप सत्य को झुठला कर चला जायेगा। – प्रकाश 'पंकज'
बहुत ही उम्दा रचना है, भूख आज की एक अहम समस्या है...
जवाब देंहटाएंधन्यबाद आर्यन जी : भूख एक चिरस्थायी सामाज्य है जो कई सदियों से चाली आ रही है ... पर अब ये बात इतनी आम हो गई है कि लोगों को इसकी आदत सी हो गई है .. ना कोई सोंचता है ना किसी को फुर्सत है इसपर विचारने को ....
जवाब देंहटाएंसिर्फ जो भूखे हैं .. वही उस क्षुधा का स्वाद जानते हैं ..
atyant bhwpurn evam sundarta se likhi hui.
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ..................माफी चाहता हूँ..
काफी मार्मिक रचना है....मन भारी भारी सा हो गया... अच्छा लिखते हैं आप...follow किये जा रहा हूँ आता रहूँगा..मेरी रचनाओं पर भी आपका स्वागत है....
जवाब देंहटाएंपहले तो इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर पधारे उसके लिए धन्यवाद... मेरी पोस्ट पर लगा चित्र मैंने नहीं बनाया ... गूगल से लिया है ..
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ....
sorry i got that wrong ...aako meri rachna pasand aayi uske liye aapka bahut bahut dahnyawaad
जवाब देंहटाएंज्योति पर्व के अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
पंकज यह सिर्फ कविता नहीं .आवाहन है. घोष बने भूख के खिलाफ .भोजन के अधिकार को पाने का सीधा रास्ता !
जवाब देंहटाएंजय हिंद !