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करे शत-प्रहार,
मुँह फाड़-फाड़,
डँसे बार-बार।
जन चीत्कार करे बार-बार,
मचे हाहाकार,
आह! अत्याचार।
ये दण्डप्रहार के बहाने हजार,
ये लोकाचार का बलात्कार,
यहाँ भ्रष्टाचार! वहाँ भ्रष्टाचार!
भारत बीमार, रोग दुर्निवार।
जन अब हमारी सुन ले पुकार,
पारदर्शिता की यह बयार
बहती हीं जाये, रुक्के न यार।
मंथन करें, कर लें विचार,
जनता की माँग जन-लोकपाल,
यह नव-संग्राम, दूषण संहार,
भ्रष्टों की हार, जन-लोकपाल।
अन्ना, किरण और केजरीवाल,
समरांत तक मानें न हार।
जन की गुहार जन-लोकपाल,
अंतिम सवाल अब आर-पार,
जन-लोकपाल या मृत्युद्वार,
मद्द में चिंघार, जन-लोकपाल।
जन-लोकपाल! जन-लोकपाल! – प्रकाश ‘पंकज’
बहुत ही अच्छी रचना है!
जवाब देंहटाएंजनभावनाओं को अभिव्यक्त करती हुयी कविता . जो अपनी भाव-भंगिमा में आन्दोलन की बेचैनी को लिए हुए हैं ......
जवाब देंहटाएंजन लोकपाल ... जन लोकपाल
जवाब देंहटाएंनिरंकुश संवेदनाहीन सरकार से मुक्ति के लिए
सामान्य जनमानस का रण उदघोष
जन लोकपाल ... जन लोकपाल
बहुत बढ़िया आदरणीय पंकज जी ....जन मानस की अभिव्यक्ति को एक नई ऊचाई देने के लिए धन्यवाद ....
हजार हजारिका ...और यह कविता ...शानदार प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंवाह ..एक -एक शब्द ...जबरदस्त ....!! हर बात नयी ऊर्जा के साथ आगे की ओर गति कर रही है !!! बधाईयाँ !!!
जवाब देंहटाएंवाह पंकज जी ... रचना के बहाने लाजवाब खाका खींचा है अपने .. आज की स्थिति का सही आंकलन ... व्यंग के साथ साएर्थक सन्देश ...
जवाब देंहटाएंpriye pankaj ji aapki vani aapki lekhni atyant ojasvi hai....aap badhai ke patra hai....aap se vinamra anurodh hai kalam rupi is shastra ki dhar ko kund na hone dijiyega.....Dhanyavad
जवाब देंहटाएंaapka apna....Ravi "Muzaffarnagri"
i like it how can i see ur other poem..
जवाब देंहटाएं@बेनामी | Anonymous: कृप्या दाहिनी तरफ देखें ... या इस पन्ने पर आयें http://prakashpankaj.wordpress.com
जवाब देंहटाएंnice pankaj
जवाब देंहटाएंआप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
जवाब देंहटाएंलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
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