सोमवार, 13 सितंबर 2010

जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।

जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।

मेरा सर फिर गया,
आंखें लाल,
शरीर गुस्से से काँप रहा है,
सांसों का तीव्र आवागमन ।

मार डालूं उन लुटेरों को जो छीन रहे हैं मुझसे मेरी वाणी।
हमें गूंगा कर रहे हैं,
हमारा सबसे समृद्ध उपहार छीन रहे हैं हमसे,
पाई है जो हमने अपने पूर्वजों से।

भाषा की खोज मे हमने
न जाने कितनी शताब्दियाँ गवाई होंगी
इसका अनुमान लगाना भी हमारे बस की बात नहीं,
और आज हम ही अपने इस अनुपम सृजन की बली चढ़ा रहे हैं ।

सच कहता हूँ, जी करता है;
भीम सामान मैं भी कुछ क्षण मानवता भूल
बन जाऊं रक्तपिपासु उनका जो हमसे लूट रहे हैं हमारी भाषा का धन,
और उन सपोलों का भी जो हमारे होकर भी साथ दे रहे हैं उन लुटेरों का।

हिन्दी भाषा हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति,
हमारी समृद्धि की परिपक्वता का प्रतीक है ।

शपथ लेता हूँ, मिटने न दूंगा अपनी भाषा को,
और मिटा दूंगा उन सबको जो आवें पथ मे ।  – प्रकाश ‘पंकज’


माफ कीजियेगा अगर कहीं भी बुरा लगा तो, ये मेरे कुछ छन्भंगुर नकारात्मक विचार थे जब मैं इस वर्ष जुलाई में अमेरिका में था। मैंने वहां देखा की जब भी कोई भारतीय (मैं बात कर रहा हूँ अपने व्यावसायिक वर्ग की) आपस में जब मिलते थे (भले ही हिन्दी भाषी क्यों न हों), उनके वार्तालाप की भाषा भी अंग्रेजी ही होती थी। यह अपवाद तब होता था जब दो बंगाली एक दुसरे से मिलते थे। जहाँ भी मैंने बंगालियों को देखा अपनी भाषा में बात करते देखा, और मुझे ये बात बहुत अच्छी लगती थी। और एक ग्लानी सी भी होती थी मन में कि हम हिन्दीभाषियों कि परवरिश में कहाँ त्रुटि रह गयी कि यह भाषा की महत्ता कहीं दूर पीछे छूट गई।
पर कोई तो बात है जो अपने ही लोग हिन्दी से दूर होते जा रहे हैं। और ऐसा भी नहीं है कि तकनीकी शिक्षा विदेशी भाषा होती है सिर्फ इसलिए हम अपने मूल को भूल रहे हैं। कारण हो सकता है हिन्दी का समय के साथ न ढलना, योग्य सेनानियों की निष्ठा में कमी और भी बहुत कुछ जो विचारणीय है । पर इसमें कहीं भी दो राय नहीं कि भण्डार असीमित है हिन्दी का।

14 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sahi likha aapne....hum hindi hai ye watan hai hindustan hamara...

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  2. yahi dharm k saath bi ho raha hai. main aapke vichaaron se sehmat hu hindi bhaasha ko gauravanvit hum hi kar sakte hai kahin to koi chuk ho rahi hai humse.

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  3. स्वभाविक प्रतिक्रिया है.


    हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

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  4. भावनाओं का जबरदस्त प्रकटीकरण

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  5. हम चाहेंगे कि आप अपना ब्लाग
    http://bharatvani.feedcluster.com/
    पर जोड़कर और अधिक लोगों तक पहुंचायें

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  6. hindi hamesha utkrisht thi hai aur rahegi hum bhartiyon ki aatmaao ka ek prabal aaweg hai ye jise hum se koi alag nahi kar sakta aur aapki bhaawnaye yahi darsha rahi hai.

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  7. Simply love you for praising bengalis, ha ha ha.
    jokes apart,
    Its one of the finest creation, may not be verbally but obviously perspective wise.
    Its high time we indians should give it a thought at least once.
    Sorry, my hindi is not as good as that of yours, so complimenting in a foreign language.

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  8. अगर कोई बंगाली खुद को हम हिंदीभाषियों से बुद्धिजीवी माने और हमें तुच्छ तो मैं स्वीकार करूँगा ...
    कारण
    कि वो अंग्रेजी तो बोलते ही है, हमसे अच्छी भी बोल लेते हैं पर अपनी भाषा
    को कभी नहीं छोड़ते.. वो सभी संस्कृतियों को मानते हैं पर अपनी नहीं
    भूलते...
    ...... जब भी २ बंगाली बात कर रहे हों तो मैं शर्त लगा सकता हूँ कि वो बंगला ही बोल रहे होंगे.
    ... यह उनकी महानता है कि वो अपनी भाषा कहने पर ग्लानी नहीं गर्व महसूस करते हैं.... और हम हिंदीभाषी आज हिन्दी बोलने में ग्लानी महसूस करते हैं गर्व नहीं .
    ... भाई जब तुमको अपनी ही चीजें नीच लगती हैं और उधार की चीजें ज्यादा पसंद हैं तो तुम नीच ही हो
    लोग चाहे जो कहें

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  9. आपकी देशभक्ति की भावना से मैं बहुत प्रभावित हुआ प्रकाश जी..आज हमारे देश को आपकी जरुरत है..हम आपके साथ हैं..

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  10. हिन्दी की सुंदरता उसकी अपनी लिपि में है .... रोमन लिपि में हिन्दी पढ़ने-लिखने में बड़ा कष्ट होता है (यह काम सोनिया जी और उनकी सेना को हीं शोभा देता है ;) )

    देवनागरी में टाइप करना आज उतना हीं आसान है जितना पानी गटकना ... आप जानते हीं होंगे फिर भी कुछ छोड़े जा रहा हूँ

    १. http://www.epicbrowser.com/ भारत का पहला वेब-ब्राउसर जिसमें हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की टाइपिंग का विकल्प है

    २. http://www.google.com/transliterate/ यह हिन्दी टाइपिंग की ऑनलाइन सुविधा..

    ३. http://www.google.com/ime/transliteration हिन्दी टाइपिंग की ऑफलाइन सुविधा जिसका प्रयोग कहीं भी किया जा सकता है नोटपैड, वर्ड इत्यादि

    ... और ऐसे हजारों विकल्प आज हैं हमारे पास हिन्दी को देवनागरी (यूनिकोड) में लिखने के लिए ..
    तो फिर .. हम उधार की लिपि में क्यों लिखें? उधार की भाषा क्यों बोले?

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  11. "अरबी,चीनी, अंग्रेजी,फ्रेँच,रुसी और स्पेनिश"
    ये वो ६ भाषाएँ है जो संयुक्तराष्ट्र की धरोहर है लेकिन हिन्दी नही|
    अपनी मातृभाषा "हिन्दी" का अत्याधिक प्रयोगकर आइये इसे विश्वस्तर का मान दिलवाने मेँ महत्त्वपूर्ण सहयोग दे.

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  12. बाजारू भाषा नहीं है हिन्दी : आशुतोष राणा
    ===========================================
    कानपुर। हिन्दी ज्ञान की भाषा है और अग्रेंजी व्यापार की भाषा है। आज के भौतिक युग में सफलता व व्यक्ति के विशेष होने का सूचक ज्ञान के बदले व्यापार है।


    हिन्दी को राज-काज की जगह काम-काज की भाषा बनाने पर ही इसका प्रचार बढ़ेगा। गंगा मां को मैला होता देखकर मन दुखी हो जाता है। यह बात सोमवार को अपने गुरू के धार्मिक कार्यक्रम में सहभागी बने फिल्मकार आशुतोष राणा ने बातचीत के दौरान कही।


    आशुतोष राणा ने कहा कि दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां उसकी राष्ट्र भाषा का पखवाड़ा मनाया जाता है। बाजारीकरण के युग में व्यापारी का महात्व है ग्राहक और बाजार का नहीं।


    जब अंग्रेज हमारे देश में व्यापार करने आए थे तो उन्हें व्यापार के लिए हमारी भाषाओं को सीखना पड़ा क्योंकि तब ग्राहक का महात्व था। आज ग्राहक को बाध्य होना पड़ता है व्यापारी की भाषा सीखने के लिए।


    व्यापारी ने अंग्रेजी को अंतरराष्ट्रीय भाषा बनाया है। दुनिया में व्यापारी के द्वारा ही भाषा का प्रचार-प्रसार ज्यादा होता है। भाषा भाव की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है और हिन्दी भाषा से अच्छी भावात्मक अभिव्यक्ति कोई भाषा नहीं कर सकती।


    उन्होंने कहा कि हिन्दी सिनेमा का हिन्दी के विकास में विशेष योगदान है। उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि राज की भाषा काज की भाषा हो लेकिन काज की भाषा जरूर राज की भाषा होती है।


    कानपुर के बारे में उन्होंने कहा कि यहां आकर मुझे बहुत अच्छा लगा। यहां के लोग बहुत ही श्रद्दावान, भक्तिवान और धार्मिक हैं। यहां के लोगों में धर्म और अर्थ का बहुत अच्छा मिश्रण है।


    आध्यात्मिक रूप से कानुर को मैं बहुत ही सम्पन्न शहर मानता हूं। गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण के सवाल पर बोले की गंगा को हम मां कहते है और जब मां अपने दायित्व का पालन हमारे मैल को साफ करके कर रही है तो पुत्र को भी उनको साफ रख कर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।


    उन्होंने कहा कि जिस तरह से मां अपने रोगी पुत्र को नहीं छोड़ती है उसे पूर्ण स्वस्थ करके ही दम लेती है। उसी प्रकार से पुत्र की भी अपनी रोगी मां को नहीं छोड़ना चाहिए उसे रोग मुक्त करने का प्रयास करना चाहिए। यदि हम गंगा को साफ नहीं रखेंगे तो वो हमें कैसी साफ रखेंगी।
    http://www.bhaskar.com/2010/04/26/kanpur-uttarpradesh-912986.html

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  13. Hello Prakash,

    Hindi is spoken by more peoples in India but it's not technical and very cluttered language with horizontal lines.If you look all Indian languages in Google Transliteration IME you will find Gujarati script very simple computer-usable language.Gujarati alphabet is very very easy for foreigners to learn and practice.

    As you know China has simplify it's language to make it computer usable.Also most of European countries and other world countries use English Script for their national languages.

    India needs one easy Script for all languages and that's Gujarati Script.

    Why not write Hindi in Gujarati Script and make it national Script(Rashtralipi)?

    http://saralhindi.wordpress.com/

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  14. Hello Prakash,
    Here is your poem in Gujarati Script.

    ( અસમાન મુલાક્ષર अ=અ , ब=બ , क=ક , इ=ઈ , ख=ખ , च=ચ , ज=જ , फ=ફ , भ=ભ , ल=લ,द=દ,झ=ઝ)




    જો મેરી વાણી છીન રહે હૈં, માર ડાલૂં ઉન લુટેરોં કો|

    મેરા સર ફિર ગયા,
    આંખેં લાલ,
    શરીર ગુસ્સે સે કાઁપ રહા હૈ,
    સાંસોં કા તીવ્ર આવાગમન |

    માર ડાલૂં ઉન લુટેરોં કો જો છીન રહે હૈં મુઝસે મેરી વાણી|
    હમેં ગૂંગા કર રહે હૈં,
    હમારા સબસે સમૃદ્ધ ઉપહાર છીન રહે હૈં હમસે,
    પાઈ હૈ જો હમને અપને પૂર્વજોં સે|

    ભાષા કી ખોજ મે હમને
    ન જાને કિતની શતાબ્દિયાઁ ગવાઈ હોંગી
    ઇસકા અનુમાન લગાના ભી હમારે બસ કી બાત નહીં,
    ઔર આજ હમ હી અપને ઇસ અનુપમ સૃજન કી બલી ચઢ઼ા રહે હૈં |

    સચ કહતા હૂઁ, જી કરતા હૈ;
    ભીમ સામાન મૈં ભી કુછ ક્ષણ માનવતા ભૂલ
    બન જાઊં રક્તપિપાસુ ઉનકા જો હમસે લૂટ રહે હૈં હમારી ભાષા કા ધન,
    ઔર ઉન સપોલોં કા ભી જો હમારે હોકર ભી સાથ દે રહે હૈં ઉન લુટેરોં કા|

    હિન્દી ભાષા હમારી સભ્યતા, હમારી સંસ્કૃતિ,
    હમારી સમૃદ્ધિ કી પરિપક્વતા કા પ્રતીક હૈ |

    શપથ લેતા હૂઁ, મિટને ન દૂંગા અપની ભાષા કો,
    ઔર મિટા દૂંગા ઉન સબકો જો આવેં પથ મે | – પ્રકાશ ‘પંકજ’

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