गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर -मेरी पहली कविता




इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे,
इनती खुशियाँ भी न देना, दुःख पर किसी के हंसी आने लगे ।

नहीं चाहिए ऐसी शक्ति जिसका निर्बल पर प्रयोग करूँ,
नहीं चाहिए ऐसा भाव किसी को देख जल-जल मरूँ ।
ऐसा ज्ञान मुझे न देना अभिमान जिसका होने लगे,
ऐसी चतुराई भी न देना लोगों को जो छलने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे ।

इतनी भाषाएँ मुझे न सिखाओ मातृभाषा भूल जाऊं,
ऐसा नाम कभी न देना कि पंकज कौन है भूल जाऊं ।
इतनी प्रसिद्धि न देना मुझको लोग पराये लगने लगे,
ऐसी माया कभी न देना अंतरचक्षु भ्रमित होने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे ।

ऐसा भग्वन कभी न हो मेरा कोई प्रतिद्वंदी हो,
न मैं कभी प्रतिद्वंदी बनूँ, न हार हो न जीत हो।
ऐसा भूल से भी न हो, परिणाम की इच्छा होने लगे,
कर्म सिर्फ करता रहूँ पर कर्ता का भाव न आने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे ।

ज्ञानी रावण को नमन, शक्तिशाली रावण को नमन,
तपस्वी रावण को स्वीकारूं , प्रतिभाशाली रावण को
स्वीकारूं
पर ज्ञान-शक्ति की मूरत पर, अभिमान का लेपन न हो,
स्वांग का भगवा न हो, द्वेष की आँधी न हो, भ्रम का छाया न हो,
रावण स्वयम् का शत्रु बना, जब अभिमान जागने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे । – प्रकाश ‘पंकज’




"itni unchai na dena ishwar ki dharati parai lagne lage"

8 टिप्‍पणियां:

  1. Nice one, mere idea se apko ek publisher k jaroorat hai , taki ye kawitayein auro tak pahunche...

    जवाब देंहटाएं
  2. jabardast yaar, waakai tum bahut hi achchi poetry karte ho.

    maine tumhare baaki poems bhi padhe hai,
    they are really very good.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी पहली कविता ने ही मुझे आपका फॅन बना दिया.....

    बहुत ही सुंदर......

    जवाब देंहटाएं
  4. bahut badhiya..tum bahut acchha likhte ho...specially is poem ki bhawnaye jabardast hai...

    जवाब देंहटाएं
  5. अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

    जवाब देंहटाएं